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आखिर क्या है Doomscrolling, जो कोरोना काल के दौरान बना ‘वर्ड ऑफ़ द ईयर’ ?

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याद है वो 2020 का समय, जब कोरोना काल के दौरान लोगों का ‘वर्क फ्रॉम होम’ शुरू हुआ या उन्हें छुट्टी लेकर घर बैठना पड़ा, कुलमिलाकर इस दौरान सारी दुनिया घरों में बंद हो गयी। अब जब बाहर जा नहीं सकते, और एक महामारी के बारे में आपको सब जानना है, तो स्मार्टफोन को स्क्रॉल करते रहना ही जीवन बन गया। उसी समय में ही शुरू हुई ये Doomscrolling। ये वो समय था, जब रात के 12 बजे भी हम फेसबुक, ट्विटर या न्यूज़ साइट पर स्क्रॉलिंग करते रहते थे। मरने वालों की संख्या कितनी बढ़ी, कोरोना का शरीर पर क्या असर है ? आप कोरोना से कैसा बच सकते हैं ? अस्पतालों में बेड उपलब्ध नहीं है, इस तरह के हैडलाइन वाली खबरों से ही स्मार्टफोन भरा रहता था और हम खुद को स्क्रॉलिंग करने से रोक नहीं पाते थे। वैसे ये पढ़कर आपको तस्सली तो मिली होगी कि आप अकेले ऐसे नहीं हैं। लेकिन सवाल ये है कि असल में डूमस्क्रॉलिंग किसे कहेंगे ? ये शब्द कहाँ से आया ? और इससे कैसे हम और आप बच सकते हैं।

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Doomscrolling (डूमस्क्रॉलिंग) किसे कहते हैं ?

Doomscrolling सबसे पहले 2018 में ट्विटर पर नज़र आया। इसके बाद कोविड-19 के दौरान 2020 में ये शब्द सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल होने लगा। 2020 में इसे ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी (Oxford Dictionary) द्वारा ‘वर्ड ऑफ़ द इयर’ का खिताब मिला और इसे एक नए शब्द के रूप में डिक्शनरी में दर्ज भी किया गया।

डूमस्क्रॉलिंग (Doomscrolling) का अर्थ होता है, सोशल मीडिया पर घंटों तक ऐसे कंटेंट को देखने या जानने के लिए स्क्रॉलिंग करना, जो निराशा या दुःख से भरा है (डिप्रेसिंग) या चिंताजनक है। जानकारी पाने के लिए ख़बरों को देखना और फिर बस स्क्रॉल करते हुए देखते ही जाना, केवल बुरी ख़बरों को, यही डूमस्क्रॉलिंग है।

फोर्डहम विश्वविद्यालय (Fordham University) के साइकोलॉजी प्रोफेसर Dean McKay का कहना है कि, “लोग रात को खबरें देखने बैठते थे, जो कि काफी भयानक भी थीं। उनके अनुसार ये देखना काफी भयानक है, जब इस तरह की डरा देने वाली खबरें, ये लोग घर में आराम से बैठकर देखते थे। उनका कहना है कि लोगों को उस समय जानकारी चाहिए थी, जो भी थोड़ी बहुत उस समय इस वायरस के बारे में उपलब्ध थी और इसी के कारण वो एक कभी न खत्म होने वाली न्यूज़ साइकिल में उलझ जाते थे।

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कैलिफ़ोर्निया की मीडिया साइकोलॉजी रिसर्च सेंटर की निदेशक, पामेला रटलेज ने डूमस्क्रॉलिंग के बारे में बताते हुए कहा है कि, “जब हम डर जाते हैं, तो किसी भी तरह कोशिश करके उसके जवाब जानना चाहते हैं। लेकिन हमें ये भी ज़रूर जानना चाहिए कि क्या ये जानकारी कोई खतरा तो नहीं, या क्या हम उस जानकारी के लिए खुद को तैयार कर पाए हैं।”

इस तरह के और भी कई रीसर्च हुए हैं, जो बताते हैं कि लोगों में मुश्किल समय के दौरान जानकारी पाने की इच्छा या प्रवृत्ति होती है और ये उस समय से बाहर निकलने के लिए एक आम तरीका कहा जा सकता है। लेकिन सोशल मीडिया पर लगातार आपके सारे सवालों के जवाब ढूंढना क्या सही है ? ख़ासतौर से एक माहमारी के दौरान।

हालांकि स्क्रॉलिंग कोई नयी चीज़ नहीं है, ये लोग पहले भी करते थे और ये हानिकारक भी है। लेकिन Doomscrolling कोरोना काल से ही शुरू हुई जब अधिकतर खबरें नेगेटिव या बुरी ही थीं और अधिकतर लोगों के पास करने को या बाहर जाने को नहीं था। इसके अलावा सोशल मीडिया की अल्गोरिथम ने भी डूमस्क्रॉलिंग को और बढ़ा दिया।

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आप जानते ही होंगे कि सोशल मीडिया एक अल्गोरिथम द्वारा आपको कंटेंट दिखाता है। जिस तरह की खबरें आप एक बार देखेंगे, उसके बाद आपका फ़ोन सोशल मीडिया ऐप पर आपको उसी तरह का और भी ढेर सारा कंटेंट दिखायेगा। एक बार आप कोई बुरी ख़बर देखिये और उसे बाद और भी इसी तरह की खबरें आती हैं और लोग उसे देखते ही रहते हैं और ये सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता। लोग जानते हैं कि ये ख़बरें उनके लिए सही नहीं है, फिर भी को खुद को स्क्रॉलिंग से रोक नहीं पाते। इसका नतीजा ये होता है कि डूमस्क्रॉलिंग करने वाले लोग अक्सर दुखी या चिंता में रहने लगते हैं।

डूमस्क्रॉलिंग से कैसे बचा जाये ?

अब हम निराशाजनक कंटेंट में डूब रहे हैं, या अच्छा कंटेंट पढ़ रहे हैं, ये सारा कसूर सोशल मीडिया का नहीं है। दरअसल इंसान की प्रवृत्ति ही ऐसी है कि वो गलत या निराशा या चिंताजनक टाइटल की तरफ जल्दी आकर्षित होता है और उस खबर को खोलता है। इसके अलावा आज कल वेबसाइटों के अधिक आकर्षित करने वाले या ऐसे टाइटल जिनमें कंटेंट को पढ़ने के लिए कुछ जिज्ञासा पैदा करने वाले शब्द हों, वो भी एक कारण हैं। और ये सब डूमस्क्रॉलिंग की वजह हैं।

डूमस्क्रॉलिंग (Doomscrolling) के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर भी काफी गलत असर पड़ता है। इंसान अक्सर दुखी रहने लगता है, या आप कह सकते हैं कि दुखी रहने वाले शख्स को डूमस्क्रॉलिंग करना अच्छा लगने लगता है। इससे बचने के लिए सोशल मीडिया के डिज़ाइन या अल्गोरिथम को इस तरह से ढालना चाहिए कि मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सके या इस तरह की अधिक खबरें उपयोगकर्ता के सामने ना आएं।

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सोशल मीडिया को स्क्रॉलिंग के लिए दोष देते हैं, लेकिन ये भूल जाते हैं कि इसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा आप लॉकडाउन में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से जुड़े रह पाएं हैं। देर रात में, अनगिनत बुरी खबरें पढ़ने से बेहतर हैं कि आप किताबों का सहारा लें या फ़ोन पर कुछ अच्छा कंटेंट देखें, जिससे मन खुश और सुकून से भरे।

अभी भी देर रात तक जागना है, पूरे दिन के बाद स्मार्टफोन को ऐसे ढूंढना जैसे कुछ अधूरा है और उसके बाद देश-विदेश की खबरें पढ़ना, जिसमें अब भी कोविड की भयानक या दयनीय न्यूज़ हैं और फिर कुछ और, जिन्हें पढ़ते हुए स्क्रॉल करना है। ये एक आदत बन गयी है, जो पिछले कुछ समय में और बुरी ही होती जा रही है। Doomscrolling असल में कभी ख़त्म नहीं होगा। जानकारी पाना अच्छी चीज़ है, लेकिन खुद को हादसों भरी खबरों में डूबा देने से कुछ हासिल नहीं होगा। आपके रोज़ घंटों खबरें पढ़ने से कोई हादसा टल भी नहीं सकता, ये केवल आपके मानसिक स्वास्थ्य को ही खराब कर रहा है और आपको इसे समझना होगा।

हम आखिर में बस इतना कहेंगे कि अगर आप भी डूमस्क्रॉलिंग (Doomscrolling)के शिकार हैं, तो इससे आपको खुद बाहर आना होगा। इसका असर केवल आपके नहीं, बल्कि परिवार के मानसिक स्वास्थ्य पर भी होगा। पहले ही कोरोना के दौर में काफी परेशानी और अकेलापन रहा है, अब सोशल मीडिया पर ऐसी ही और खबरें पढ़कर इस तकलीफ क्यों बढ़ाना। तो कोशिश कीजिये की स्क्रॉलिंग बंद करें। या करना ही है, तो कुछ अच्छा सर्च करें, फिर अपनी अल्गोरिथम से सोशल मीडिया भी आपको अच्छी खबरें ही दिखायेगा।

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