मैं पिछले कुछ दिनों से इस चीज़ से काफी परेशान हूँ कि सुबह आँख खुलते ही हाथ अपने आप फोन की तरफ बढ़ जाता है। सोने से पहले आखिरी चीज़ जो देखती हूँ, वो भी फोन की स्क्रीन ही होती है। फोन की इतनी आदत, कि अगर सुबह न दिखे तो जैसे कुछ अधूरा रह जाएगा। लेकिन जब सुबह की स्क्रॉलिंग के बाद उठो, तो सर घूमने लगता है और दिन की शुरुआत ही थकी थकी सी होती है। जब मेरा एक हफ्ता ऐसा गया और मैंने हफ्ते के अंत में स्क्रीन टाइम देखा, तो रोज़ का एवरेज: 4 घंटे से ज़्यादा था। अब आप ये सोचिये कि इस तरह की आदटी आजकल सभी युवाओं में हैं। इस आदत के साथ सेहत और नींद पर तो बुरा असर पड़ ही रहा है, लेकिन हम सप्ताह में 25 घंटे से भी ज़्यादा का समय बर्बाद कर रहे हैं, जो इस समय हमारे लिए बेहद कीमती है।
इसी मूल्यवान समय को बचाने के लिए मैंने कुछ चीज़ों में बदलाव किया और इससे वाकई काफी फायदा हुआ। इस समय को हम अपने दफ्तर के काम में या परिवार और दोस्तों के साथ एक अच्छी याद बनाने में भी बिता सकते हैं।

खाली समय फोन के बिना भी कट सकता है
सबसे पहले तो मैं ये बता दूँ कि स्क्रीन टाइम कम करना कोई आसान बात नहीं है। जब भी आप फोन को दूर रखने का निर्णय करेंगे, तो कोई मैसेज या कॉल आपको बुला ही लेगा और फिर आप वहीँ से किसी नोटिफिकेशन के ज़रिये स्क्रॉलिंग या गेमिंग तक पहुँच जायेंगे और थोड़ी देर बाद जब नज़र उठा के घड़ी की तरफ देखेंगे, तो आपको अफ़सोस भी होगा। इसी लूप से निकलने के लिए मैंने कुछ चीज़ें बदलीं
मैंने गौर किया कि जब भी थोड़ा भी खाली समय मिलता था, तो मैं हाथ अपने आप फोन की तरफ़ जाती थी, जैसे कैब में, लंच ब्रेक में। लेकिन मैंने इसे बदलने की पूरी कोशिश की। अब मैं लंच के बाद 10 मिनट टहलती हूँ और फोन को डेस्क पर या बैग में छोड़ देती हूँ। शुरू में अजीब लगा, लेकिन धीरे धीरे आपको अनुभव होगा कि अब आप फोन में नहीं, बल्कि बाहर लोगों को देख रहे हैं, या किसी अच्छी सोच में डूबे हैं। कभी कभी अपने विचारों के साथ समय बिताना भी अच्छा होता है, कम से कम उससे आँखों पर दबाव तो नहीं पड़ता।
स्क्रीन टाइम को कम करने के लिए मैंने अपनाये ये छोटे छोटे स्टेप्स

कुछ दिन बीतने के बाद, आपको ये एहसास होगा कि हर बार मन में फोन का विचार आ रहा है और आप फोन की स्क्रीन के गुलाम बन चुके हैं। ये सोचने के बाद मुझे थोड़ा और गुस्सा आया और मैंने खुद को और नियंत्रित किया।
- सोशल मीडिया ऐप्स की टाइम लिमिट सेट की: इंस्टाग्राम और यूट्यूब को दिन में अब मैं सिर्फ 15-15 मिनट का समय देती हूँ। जब टाइम खत्म होता है, तो ऐप चलती ही नहीं। लेकिन ध्यान रखें कि आपने जो टाइम लिमिट सेट की है, उसे आप खुद ही बढ़ा देंगे तो ये कोशिश बेकार हो जाएगी।
- ब्लू लाइट फ़िल्टर ऑन किया: रात को 10 बजे के बाद फोन का डिस्प्ले वॉर्म टोन पर सेट कर दिया, जिससे स्क्रीन देखने की इच्छा थोड़ी कम हो गई।
- Sleep मोड लगाएं – रात को 10 बजे से सुबह के 6 बजे तक फोन में स्लीप मोड ऑन करें, ताकि कोई बेकार की नोटिफिकेशन आपको परेशान न करे।
इन छोटी छोटी आदतों से समझ आया कि सोशल मीडिया स्क्रॉलिंग के बिना जीना दिमाग तो थोड़ा ताज़ा रखता है और फोन अगर सोने से कुछ समय पहले बंद कर दिया जाये, तो नींद भी अच्छी आती है। सबसे खास बात ये कि अनुभव होता है कि समय कम नहीं है, बहुत है, बस उसे सही जगह लगाने की ज़रुरत है।
इसके बाद मैंने कुछ छोटे छोटे स्टेप्स और लिए, जैसे –
- फोन को बेड से दूर रखना।
- सुबह उठने के बाद बाहर जाना और फोन का इस्तेमाल आधे घंटे तक न करना।
- अलार्म के लिए फोन छोड़ घड़ी या स्मार्ट क्लॉक का इस्तेमाल
- कुछ जगहों पर जैसे खाना खाते समय, फोन का इस्तेमाल न करना।
- छुट्टी के दिन परिवार के साथ टीवी देखना, फोन की स्क्रीन से कहीं बेहतर है।
- देर रात में मैसेज या मेल पढ़ना भी पड़े तो, ब्लैक एंड वाइट मोड या रीडिंग मोड ऑन करके पढ़ना।
इन बदलावों के बाद मुझे ये समझ आया कि सबसे खराब आदत है सुबह उठते ही स्क्रीन के दर्शन। अब मेरा फोन मैं अपनी मर्ज़ी से देखती हूँ, फोन की मर्ज़ी से मैं नहीं चलती। इन छोटी छोटी आदतों के साथ हमारे अंदर की बैचनी भी थोड़ी कम होती है और फोकस धीरे धीरे बढ़ता है।

































